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बुधवार, 23 दिसंबर 2009

उसने पुकारा मुझको

कल का दिन
मेरी ज़िन्दगी का
वो दिन था
जब मैं ज़िन्दगी के
करीब था
वो
जिससे मैंने मिलना चाहा
इक नज़र देखना चाहा
लाखों पैगाम भेजे
मिन्नतें की
सदके किये
मगर ये सोच
पत्थर भी कभी
पिघले हैं
खामोश हो जाता था
और अपनी
मोहब्बत से मजबूर हो
बार - बार
आवाज़ दिए जाता था
मगर उस दर पर
कभी मेरी
ना फरियाद कबूल हुई
ना ही कोई
जवाब आया
मगर ना जाने
ये मोहब्बत की
कशिश थी
या मेरी
दुआओं का असर
कल मेरी मोहब्बत ने
पुकारा मुझको
आवाज़ दी
हिमखंड शायद
पिघल रहा था
लम्हा वहीँ ठहर गया
शब्द वहीँ रुक गए
जुबान खामोश हो गयी
धडकनों की धड़कन भी
थम सी गयी
मेरे पंखों को
परवाज़ मिल गयी थी
मेरे गीतों को
आवाज़ मिल गयी थी
होशो- हवास ना जाने
किन फिजाओं में
तैर रहे थे
ख्वाबों को भी शायद
पंख मिल रहे थे
तन- मन झंकृत
हो रहा था
बिना साज के सुर
सज रहे थे
गीतों की बयार
बहने लगी थी
मैं कल्पनाओं के
आकाश में
विचर रहा था
तभी उसने फिर पुकारा
तब ख्यालों की
नींद से जागा
यथार्थ के धरातल
पर उतरा
यूँ लगा
किसी दर्द के गहरे
कुएं से आवाज़ आई हो
किस मजबूरी से मजबूर हो
उसने पुकारा मुझे
किस बेबसी से बेबस हो
आवाज़ दी होगी
इस ख्याल ने ही
रूह कंपा दी मेरी
वो जो मिलना तो दूर
बात भी ना करना चाहती हो
वो जो ख्यालों में भी
किसी को ना आने देती हो
वो जो हवाओं के
साये से भी
कतराती हो
वो जो चांदनी से भी
घबराती हो
वो जो गुलों के
खिलने से भी
शरमा जाती हो
ना जाने किस
भावना के वशीभूत हो
उसने पुकारा मुझे
उसके दर्द की
थाह कैसे पाउँगा
किन शब्दों का
मरहम लगाऊँगा
कैसे उसकी सर्द आवाज़ में
ठहरे दर्द के सागर को
लाँघ पाउँगा
कैसे उसे उसके दर्द से
जुदा कर पाउँगा
कैसे उसके जीवन के
गरल को सुधा सागर में
बदल पाउँगा
कहाँ से वो दामन लाऊँ
जहाँ मिलन की
ख़ुशी को सहेजूँ
या
उसके दर्द की
इम्तिहान देखूँ
किस दामन में
उसकी बेबसी के
दर्द की
मिटटी को समेटूँ


33 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति है। बेबसी और दर्द की इन्तहा। शुभकामनायें

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  2. मिलन की
    ख़ुशी को सहेजूँ
    या
    उसके दर्द की
    इम्तिहान देखूँ

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
    पूरी रचना का सार इसी में समाया है।

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  3. नाकाम मुहब्बत की पीड़ा और वेदना

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  4. मिलन की यह अनुभूति मार्मिक भी है और ख़ुशी भी देती है...
    क्या कहू इस बारे में...
    मौन सा कर दिया..
    मीत

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  5. हृदयस्पर्शी...
    किसी आहत मन की अभिव्यक्ति है यह...
    यही महसूस कराती है..

    जवाब देंहटाएं
  6. मुहब्बत की दुआओं के असर की
    मार्मिक अभिव्यक्ति ...!!

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  7. हिमखंड शायद
    पिघल रहा था
    लम्हा वहीँ ठहर गया
    शब्द वहीँ रुक गए
    ऐसा ही होता है कुछ फुसफुसाहटें भी सुनने के लिये पूरी कायनात ठ्हर जाती है.
    बहुत सुन्दर और गजब की अभिव्यक्ति

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  8. मार्मिक अभिव्यक्ति ,इस दर्द,और बेबसी को बड़ी कुशलता से बयाँ किया

    जवाब देंहटाएं
  9. उसके दर्द की
    थाह कैसे पाउँगा
    किन शब्दों का
    मरहम लगाऊँगा
    कैसे उसकी सर्द आवाज़ में
    ठहरे दर्द के सागर को
    लाँघ पाउँगा ....

    मार्मिक ....... जिसको इंसान चाहता है उसको दर्द में छटपटाता नही देख सकता .........

    जवाब देंहटाएं
  10. उसके दर्द की
    इम्तिहान देखूँ
    किस दामन में
    उसकी बेबसी के
    दर्द की
    मिटटी को समेट
    Man mein uthane wali dard ki tees ka bakhuti anjaam diya aapne.....
    शुभकामनायें

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  11. बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है । अन्दर तक भिगो गयी ।
    बधाई !

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  12. ओ दूर के मुसाफि‍र हमको भी साथ् ले ले रे हम रह गये अकेले......हम रह गये अकेले

    जवाब देंहटाएं
  13. wah wah wah..................................
    .....................................
    ......................................
    dil ko chhooti hui rachna ke liye badhaai.

    जवाब देंहटाएं
  14. उसने पुकारा मुझको....बहुत ही भावपूर्ण रचना..

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  15. प्रेम कि मार्मिक अभिव्यक्ति के साथ ...सुंदर रचना.... आपकी लेखनी कि यही ख़ास बात है कि आप कि रचना बाँध लेती है.....

    आभार....

    जवाब देंहटाएं
  16. प्रेम कि मार्मिक अभिव्यक्ति के साथ ...सुंदर रचना.... आपकी लेखनी कि यही ख़ास बात है कि आप कि रचना बाँध लेती है.....

    आभार....

    जवाब देंहटाएं
  17. मिलन की
    ख़ुशी को सहेजूँ
    या
    उसके दर्द की
    इम्तिहान देखूँ

    बहुत खूब मार्मिक अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत भाविभोर करती रचना मन को हर कोण से छूती है.आपके हिमखंडों से याद आ गयी मेरी अगली रचना जो मैं इतवार को पोस्ट करने वाली हूँ
    " सांसे तन से छूट रहीं थी
    हिमखंडों सी टूट रहीं थीं
    टूटी सांसों की तूलिका
    ओस की बूंदों के आईने में
    कुछ चित्र अधूरे खीचं रही थी "
    बहुत बहुत बधाई

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  19. कल मेरी मोहब्बत ने
    पुकारा मुझको
    आवाज़ दी
    हिमखंड शायद
    पिघल रहा था
    मर्मस्पर्शी रचना....बहुत खूबसूरती से एहसास लिखे हैं....बधाई

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  20. marm ko chhooti hui si rachna. abhivyakti dard aour prem ke aapsi rishte ko bhi bakhhaanti he..

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  21. तुम पकड़ो इस हालात में भी हाथ उसका, इसको प्रेम कहते हैं, तुम जुदा होकर भी जुदा न हो उसके दर्द से इसको प्रेम कहते हैं। उसने नहीं, तुम तुम्हारे दर्द ने पुकारा है।

    औरत का दर्द-ए-बयां

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  22. मिलन की
    ख़ुशी को सहेजूँ
    या
    उसके दर्द की
    इम्तिहान देखूँ

    .........काफी सुन्दर रचना! हमारी बधाई स्वीकार करें.

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  23. adhuri prem ki vedna ko main bhali bhanti samajh sakta hun par aapki tarah use itni khubsurati se vyakt nahi kar sakta.. adbhutaas...

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  24. waah..... ek taraf judaai ka dard hai to dusri taraf milan ki khushi bhi... bahut acche se sanjoya aapne apne jazbaato ko...!

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  25. बहुत सुन्दर रचना
    बहुत -२ बधाई

    जवाब देंहटाएं

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