दोस्तों ,
आज ज़िन्दगी पर १०० वी पोस्ट डाल रही हूँ । उम्मीद करती हूँ हमेशा की तरह इसे भी आप सबका स्नेह प्राप्त होगा।
इक उम्र
इंतज़ार किया तेरा
तुम अपने जीवन की
हलचलों में गुम थे
मैं अपनी ज़िन्दगी की
खानाबदोशी में खुश थी
मगर फिर भी
इक प्यास थी
किसी की चाहत थी
एक आस थी
एक विश्वास था
कोई न कोई
तो होगा
जो मेरा होगा
या किसी की
रूह की तस्वीर
मैं होऊँगी
देह का जीवन तो
जी चुकी थी
रूह का जीवन
अभी सूना था
न जाने किस
इंतज़ार में.........
ज़िन्दगी यूँ ही
गुजरती रही
और उम्र यूँ ही
बढती रही
आज जब सोच
कुंद हो चुकी है
मानस क्षुब्ध
हो चुका है
चाहत सब
भस्म हो चुकी है
उम्र का आखिरी
पड़ाव आ चुका है
उस पड़ाव पर
तुम मिले हो मुझे
मेरा इंतज़ार करते हुए
जन्मों से खोज रहे थे
मिलन की बाट जोह रहे थे
विरह- व्यथा का दावानल
जो अंतस में जला था
आओ चिर- प्रतीक्षित
उर- ज्वाला को
भावों की चांदनी में
नहला दें
तुम्हारे चेहरे की लकीरों में
छुपे वियोग के दर्द को
कुछ चाहत का मरहम लगा दूँ
जन्मों से तेरी नज़रों में
ठहरे पतझड़ को
अपनी नज़रों के नेह से
वासंतिक बना दूँ
अधरों पर पसरे मौन को
शब्दों का जामा पहना दूँ
अब मत पढो
चेहरे को
तुम्हारा ही अक्स
नज़र आएगा
तुम और मैं
दो थे ही कब
वक्त का ही
तो परदा था
जो इंतज़ार का दर्द
तूने सहा
वो क्या मुझसे
जुदा था
आओ , आज मिलन
को साकार बना दें
जन्मों से बिछड़े
प्रेम को साकार बना दें
दोनों के अव्यक्त प्रेम को
प्रेम का प्रतिबिम्ब बना
चिरनिद्रा में सो जाएँ
रूह का रूह से
मिलन करा दें
आओ , प्रेम को
साकार बना दें
सबसे पहले तो सौवीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई..... व शुभकामनाएं......
जवाब देंहटाएंआओ , आज मिलन
को साकार बना दें
जन्मों से बिछड़े
प्रेम को साकार बना दें
दोनों के अव्यक्त प्रेम को
प्रेम का प्रतिबिम्ब बना
चिरनिद्रा में सो जाएँ
रूह का रूह से
मिलन करा दें
आओ , प्रेम को
साकार बना दें
प्रेम के इस वास्तविक स्वरुप को खूबसूरती से लिखा है आपने..... बहुत ही अच्छी लगी यह कविता.....
Regards....
सबसे पहले तो सौवीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई..... व शुभकामनाएं......
जवाब देंहटाएंआओ , आज मिलन
को साकार बना दें
जन्मों से बिछड़े
प्रेम को साकार बना दें
दोनों के अव्यक्त प्रेम को
प्रेम का प्रतिबिम्ब बना
चिरनिद्रा में सो जाएँ
रूह का रूह से
मिलन करा दें
आओ , प्रेम को
साकार बना दें
प्रेम के इस वास्तविक स्वरुप को खूबसूरती से लिखा है आपने..... बहुत ही अच्छी लगी यह कविता.....
Regards....
पहले तो आपको १००वी पोस्ट की बहुत बहुत बधाई...एक मील का पत्थर पार कर लिया,आपने ...कविता भी बहुत अच्छी है...अनेक अनकहे भाव समेटे हुए.
जवाब देंहटाएंshatak mubaaraq !
जवाब देंहटाएंbahut hi gahri aur umdaa kavita
badhaai aapko !
दोनों के अव्यक्त प्रेम को
जवाब देंहटाएंप्रेम का प्रतिबिम्ब बना
चिरनिद्रा में सो जाएँ
रूह का रूह से
मिलन करा दें
आओ , प्रेम को
साकार बना दें
बहुत सुन्दर, सौवीं पोस्ट के बहुत बधाई !
शतक लगाने व सुन्दर कविता के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
विरह- व्यथा का दावानल
जवाब देंहटाएंजो अंतस में जला था
आओ चिर- प्रतीक्षित
उर- ज्वाला को
भावों की चांदनी में
नहला दें
दिल की गहराई में जा कर भावनाओं को टटोलते हुए अनजाने में ही बहुत कुछ कुरेद गयी
बहुत सुंदर भाव समेटे हुए एक बेहतरीन रचना
वंदना जी,सब से पहले तो १००वीं पोस्ट की बहुत बहुत बधाई।इस गति को निरन्तर बनाएं रखें...शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंदेह का जीवन तो
जी चुकी थी
रूह का जीवन
अभी सूना था
न जाने किस
इंतज़ार में.........
बहुत सुन्दर पंक्तियां है यही से अपने लिए जीना शुरु होता है। बहुत बढिया रचना लिखी है बधाई स्वीकारें।
१००पोस्ट बहुत बहुत बधाई यह रचना भी हमेशा की तरह बहुत मन भायी.शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसौंवी पोस्अ की बहुत बहुत बधाई!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिखा आपने .. जल्द पांच सौंवी भी पूरी करें .. शुभकामनाएं !!
vandana,
जवाब देंहटाएंabhi sirf 100 th post ke liye badhai ..
kavita ke baare me main abhi kuch kahne ki stithi me nahi hoon .. i am just speachless for the expressions in this poem..
baad me phir aana padenga ji
regards
vijay
तुम अपने जीवन की
जवाब देंहटाएंहलचलों में गुम थे
मैं अपनी ज़िन्दगी की
खानाबदोशी में खुश थी
wah , bahut khoob..
देह का जीवन तो
जी चुकी थी
रूह का जीवन
अभी सूना था
ruh ki baat ruh se...sundar abhivyakti
जन्मों से तेरी नज़रों में
ठहरे पतझड़ को
अपनी नज़रों के नेह से
वासंतिक बना दूँ
khoobsurat khayaal .
adwitiya prem ko racha hai is rachna men....100 vin post ke liye badhai
बड़े ही खूबसूरत जज़्बात हैं
जवाब देंहटाएंसौंवी पोस्ट की बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंवन्दना जी, अगर आप अन्यथा न लें एक बात कहूं, जब एक से अधिक लोगों को भी सम्बोधित किया जाता है, तो भी उसमें अं की बिन्दी नहीं लगाई जाती है।
------------------
छोटी सी गल्ती, जो बड़े-बड़े ब्लॉगर करते हैं।
धरती का हर बाशिंदा महफ़ूज़ रहे, खुशहाल रहे।
बहुत-बहुत बधाई इस शतकीय प्रस्तुति के लिये,
जवाब देंहटाएंप्रेम का प्रतिबिम्ब बना
चिरनिद्रा में सो जाएँ
रूह का रूह से
मिलन करा दें
आओ , प्रेम को
साकार बना दें ।
सुन्दर शब्द रचना के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
aapko aapki 100 vi rachna ke liye anekon badhaai..sach much aapki badi uplabdhi hai..
जवाब देंहटाएंaur kavita ...hamesha ki tarah saargarbhit..prem ki unchhaiyon ko chhooti hui...
badhai..
इक उम्र
जवाब देंहटाएंइंतज़ार किया तेरा
तुम अपने जीवन की
हलचलों में गुम थे
मैं अपनी ज़िन्दगी की
खानाबदोशी में खुश थी
खूबसूरत भाव भरी रचना!
जिन्दगी पर प्रविष्टियों के शतक की
शतकाधिक शुभकामनाएँ!
sauvi post ke liye bahut bahut hardik shubhkamana ....
जवाब देंहटाएंaapki kalam yun hi askhlit bahati rahe hardam ye prarthana ...
बहुत लाजवाब
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंsarvapratham aapki 100th post par dheron badhaiyan.
जवाब देंहटाएं" ek aas thi ek vishvas tha............n jaane kis intzaar men. bahut hi badhia panktian.
badhaai. badhaai. badhaai.
इस शतकीय प्रविष्टि पर बहुत बधाई -उम्दा रचना !
जवाब देंहटाएंसबसे पहले सौंवी पोस्ट की बधाई....बहुत ही अच्छी कविता है.शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएं100 वीं पोस्ट की बधाई। अच्छी रचना। भावपूर्ण।
जवाब देंहटाएंरूह का रूह से
जवाब देंहटाएंमिलन करा दें
आओ , प्रेम को
साकार बना दें
.... बहुत सुन्दर !!!
सौवीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार रचना...
शुभकामनाएं..
मुबारकबाद आपके शतक पर!लिखते पढते रहें!
जवाब देंहटाएंHappy Bologging!
Aameen..itnahee kah saktee hun!
जवाब देंहटाएंAur bahut,bahut badhayee!
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
.
सौवीं पोस्ट की बधाई।
बहुत सुन्दर । सौंवी पोस्ट की शुभकामानायें ।
जवाब देंहटाएंCongratulations for the century :) ..its beutifully written ...
जवाब देंहटाएंजन्मों से तेरी नज़रों में
जवाब देंहटाएंठहरे पतझड़ को
अपनी नज़रों के नेह से
वासंतिक बना दूँ
jaane kya baat hai in lines me ,man ruk sa gaya hai ji...
mera salaam kabul kare ,in lines ke liye ...
aapka
vijay
aapki 100vi post par
जवाब देंहटाएंbahut bahut mubarakbaad .
aur
rachnaa ki tareef ke liye to shabd
km parh rahe haiN....
"aao prem ko saakaar banaa deiN..."
waah !!
doton
जवाब देंहटाएंtahe dil se aap sabki shukragujar hun..........aap sabka itna sneh hriday ko dravibhoot kar jata hai........aage bhi aise hi apna sneh banaye rakhein.
शानदार शतक,
जवाब देंहटाएंशुन्दर भाव समेटे अद्भुत रचना.
बधाई लीजिये
१००वी पोस्ट के लिए बधाई...
जवाब देंहटाएंमेरी होसला अफजाई के लिए शुक्रिया...
और....
आपने जो इतनी बेहतरीन और खूबसूरत रचना की उसके लिए आप बेइंतेहा तारीफ़ की हकदार हैं...
मीत
इतनी भाव पूर्ण रचना के साथ १०० रचनाएँ पूरी करने की बधाई ........... यादगार रचना है ये ...........
जवाब देंहटाएंसबसे पहले 100वी पोस्ट की बहुत बहुत बधाई। इस बात पर तो मुँह मीठा होना चाहिए जी। खैर रचना का तो जवाब नहीं। बहुत प्यारी और सुन्दर लिखी गई है यह रचना "प्रेम को साकार बना दें" चलते चलते एक बात और अगर प्रेम करने वाले दुनिया वालों के लिए कुछ अलग सा कर जाए और जीवन को एक अर्थ दे जाए।
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत -२ आभार
बधाई।
जवाब देंहटाएंKavita bahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएं100th post ke liye badhai.Safar jari rahe.
100th post 100 take khubsurat...bahut sundar!!
जवाब देंहटाएंBadhaiya,,,jald naye mukam par pahunche..
वंदना जी,
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम ब्लॉग पर शतक जमाने के लिए आपका ब्लॉग जगत में शत-शत अभिनन्दन.
कुछ भी लिखना बड़ा आसान होता है परन्तु उद्देश्यपूर्ण लेखन में बौद्धिक चिंतन की गहनता और वक्त खपाने का असर स्पष्ट दिखाई देता है.
आप शनैः- शनैः गंभीरता से इस पड़ाव तक पहुँची हैं. मैं यहाँ यह कहने से परहेज नहीं करूँगा कि ये तो आपका एक पड़ाव है , साहित्य पथ पर ऐसे कई पड़ाव पार करते हुए आपको अपनी वांछित मंजिल तक पहुँचना है. मुझे विश्वास है कि आपकी लगन और साहित्यिक निष्ठा एक दिन अवश्य ही आपको सफलता दिलाएगी.
जिंदगी में प्रेम - विरह सदैव वक्त और परिस्थितियों पर भी निर्भर करते हैं. कुछ ऐसे ही वातावरण से प्रेरित यह रचना चिंतन परक हो गयी है. कहीं कहीं शब्दों के विन्यास और प्रांजलता से रचना भाव गर्भित भी बन पड़ी है.
आप आगे भी निरंतर साहित्य जगत में आलोकित हों , ऐसी हामारी शुभकामनाएँ हैं.
- विजय तिवारी ' किसलय '
वंदना जी
जवाब देंहटाएंदेर से आने पर क्षमा चाहता हूँ...सौ वीं पोस्ट की बधाई...आप ब्लॉग जगत की सचिन बनें और शतक के बाद शतक इसी तरह जमातीं रहें ये कामना करता हूँ...
अब मत पढो
चेहरे को
तुम्हारा ही अक्स
नज़र आएगा
तुम और मैं
दो थे ही कब
आपकी ये रचना अद्भुत है...अत्यधिक कोमल भावों को शब्दों में पिरोया है आपने...वाह...
नीरज