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रविवार, 11 अक्टूबर 2009

तुम जीत गए ,मैं हार गई

दो विपरीत ध्रुवों सा
जीवन अपना
साजन यूँ ही बीत गयातुम अपने धरातल से
बंधे रहे
मैं अपने बांधों में
सिमटी रही
तुम वक्त के प्रवाह संग
बहते रहे
मैं वक्त के साथ
न चल सकी
तुमने पाया हर
स्वरुप मुझमें
मैं तुममें कृष्ण
न पा सकी
धूप छाँव के
इस खेल में साजन
तुम जीत गए
मैं हार गई

33 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्‍छी और भावपूर्ण रचना के लिए ढेरों बधाई वंदना जी

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  2. "दो विपरीत ध्रुवों सा
    जीवन अपना"...

    शुरुआत ही इतनी प्रभावी थी कि पूरी रचना बाँध गयी । आभार ।

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  3. दो विपरीत ध्रुवों सा
    जीवन अपना
    साजन यूँ ही बीत गया
    तुम अपने धरातल से
    बंधे रहे
    मैं अपने बांधों में
    सिमटी रही

    वंदना जी
    आपकी रचना मन को छू गई . कितना सुन्दर कम शब्दों में आप अच्छा लिखती है . बधाई

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  4. दो विपरीत ध्रुवों सा
    जीवन अपना
    साजन यूँ ही बीत गया
    तुम अपने धरातल से
    बंधे रहे
    वन्दना जी कविता अच्छी है

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  5. aksar kabhi kbhi insan jeevan bhar saath to chalta hai par nadi ke do kinaaron ki taarah .... bahoot cchaa likha hai ...

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  6. बहुत ही सुन्दर अपने में,सुन्दर भाव समेटे हुई रचना ।

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  7. वन्दना जी !
    आपने जीत-हार की बहुत सुन्दर व्याख्या
    अपने शब्द-चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत की है।
    बधाई!

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  8. संस्मरणात्मक वक्तव्य सयास बांध लेते हैं, और कुतूहल पैदा करते हैं।

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  9. दो विपरीत ध्रुवों सा
    जीवन अपना
    भावो की अप्रतिम प्रगाढता आपकी रचनाओ मे दिखती है
    बहुत खूब

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  10. धूप छाँव के
    इस खेल में साजन
    तुम जीत गए
    मैं हार गई

    हार मानने से काम नहीं चलेगा
    बहुत अच्छी कविता है

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  11. रचना जी ,इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई .

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  12. तुमने पाया हर
    स्वरुप मुझमें
    मैं तुममें कृष्ण
    न पा सकी


    wah agar main is poem ko sahi samajh paya hoon ko gulazaar sa'ab ki ek nazm ka antra iske comment ke roop main...
    "Mora gora ang leiye le...
    Mohe shyaam rang daiye de."

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  13. बहुत सुन्दर रचना
    सायद पहले बार ये बात हुई होगी किसी महिला ने अपने साजन से ये बात कही होगी
    "तुम जीत गए मैं हार गई"

    बधाई !

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  14. प्यार में हार भी जीत के समान है और हार के भी जीत ही होती है ...बढ़िया रचना

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  15. बहुत ही ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! इस बेहतरीन और शानदार रचना के लिए बधाई !

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  16. वाह सुन्दर भाव वाली एक मनोहारी अभिव्यक्ति!

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  17. ये 'हार के भी जीत है' वाली हार नहीं लग रही !पता साजन भी जीता या नहीं !

    "तुम अपने धरातल से
    बंधे रहे" ..... "तुमने पाया हर
    स्वरुप मुझमें".... "तुम जीत गए
    मैं हार गई"

    भाव बहुत अच्छे !

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  18. यह स्वीकारोक्ति अच्छी है लेकिन ..फिरभी .. ।

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  19. vandana..

    this is one of your best compositions.. truly showing colours of a destroyed life/love .

    regards

    vijay

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  20. bahut achaa likhty hain aap eshi likhty rahiye

    deepawali ki subhkamnayen

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