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सोमवार, 14 नवंबर 2022
चाहत की बाँझ कोख
कुछ तुझे दे देती कुछ मैं जी लेती
वैसे ही आँखों में उगी नमी से नहीं की जा सकतीं दस्तकारियाँ
अब जुगलबंदी पर नृत्यरत है उम्र की कस्तूरी
किस सीप से मोती निकाल
करूँ मोहब्बत का श्रृंगार
न देखने की
न मिलने की
न चाहने की
कसम खायी है
चाहत की बाँझ कोख में नहीं रोपे जा सकते कभी बीज मोहब्बत के
शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2022
स्त्री की जुबान
मैंने खुद से प्यार किया और जी उठी
देते रहो अनेक परिभाषाएं
करते रहो व्याख्याएं
मैंने पा लिया है अपने होने का अर्थ
मेरी पहली छलांग से तुम्हारी आँखों की गोटियाँ बाहर निकल आयीं
आखिरी छलांग से नापूँगी कौन सा ब्रह्मांड
समय की धारा ने बदल लिया है चेहरा
दे रही है एकमुश्त मुझे मेरा हिस्सा
तो
बदहवासी की छाया से क्यों ग्रसित है मुख तुम्हारा
जो मेरा था मुझे मिल रहा है
तुम्हारी एक भृकुटि से थरथराता था सारा जहान
आज मेरी एक फूँक से हिल जाता है तुम्हारा आसमान
तिर्यक रेखाओं के गणित जान गयी हूँ
जब से
तुम्हारी आँख की किरकिरी बन गयी हूँ तब से
चढ़ाओ प्रत्यंचा
भेदो मेरे अंतरिक्ष को
मंगलवार, 16 अगस्त 2022
लठैत - बकैत
शर्मा जी: नमस्कार वर्मा जी
वर्मा जी: नमस्कार शर्मा जी
शर्मा जी: कहाँ थे इतने दिनों से?
वर्मा जी: हैं तो यहीं लेकिन अदृश्य हैं जी
शर्मा जी : वह क्यों? क्या आप भी भगवान बन गए हैं?
वर्मा जी: अब हमें कौन पढता है जी, तो अदृश्य ही रहेंगे न
शर्मा जी: अजी नहीं आप तो छाये हुए हैं.
वर्मा जी: आप हकीकत नहीं जानते वर्ना ऐसा न कहते. आज कोई किसी को पढना ही नहीं चाहता. पाठक न जाने कहाँ गायब हो गए हैं? लेखकों की अलग रामलीला चलती रहती है ऐसे में हम जैसों को अदृश्य होना ही पड़ता है जिनका न कोई गढ़ है न मठ, जिनके न कोई लठैत हैं न बकैत.
शर्मा जी: अजी छोडिये भी ये रोना.पाठकों की कमी के दौर में लेखक ही पाठक हैं आज. वे भी बंटे हुए हैं. सबके अपने मठ गढ़ विचारधाराएँ हैं. जब इतने विभक्त होंगे तब एक लेखक को कौन पढ़ेगा यह प्रश्न उठता है. सच्चा पाठक आज के दौर में दुर्लभ होता जा रहा है. यदि गलती से कोई सच्चा पाठक है भी और यदि उसने कुछ कटु कह दिया तो वह लेखक को स्वीकार्य नहीं. वहीँ एक लेखक यदि दूसरे लेखक के लेखन के विषय में कुछ कह दे तो भी तलाक निश्चित है. ऐसे में गिने चुने ही लेखक बचते हैं जो दूसरे लेखकों को पढ़ते हैं.
कुल मिलाकर इतना सब कहने का बस यही हेतु है यदि आप स्वयं को पढवाना चाहते हैं, आप भी लेखक हैं तो आपको भी पाठक बनना होगा, औरों को पढना होगा अन्यथा एक दिन सभी अपनी अपनी ढपली और अपना अपना राग बजाते रह जायेंगे क्योंकि मूर्ख यहाँ कोई नहीं है. सभी रोटी खाते हैं तो इतनी अक्ल तो रखते ही हैं कि आप हमें पढेंगे तभी हम आपको पढेंगे, आप हम पर लिखेंगे तभी हम आप पर लिखेंगे और यदि गलती से आपने किसी किताब पर कुछ न कहा तो हम आपका बहिष्कार कर देंगे फिर आप चाहे कितना ही अच्छा लिखते हों, सारे पुरस्कारों सम्मानों से आपका दामन भरा हो.
जब ऐसा लेखन का दौर चल रहा हो वहां साहित्य की गति की किसे चिंता. पहले अपनी चिंता कर ली जाए और जीते जी मोक्ष प्राप्त कर लिया जाए, उसके बाद देख लिया जाएगा साहित्य किस चिड़िया का नाम है. आज का दौर नयी भाषा, नए शब्द, नयी विधा गढ़ने का दौर है इसलिए जो भी लिखेंगे सब मनवा लेंगे, स्वीकार करवा लेंगे, वे जानते हैं. बस पहले अपनी गोटी सेट कर ली जाए फिर तो पाँचों घी में ही रहेंगी इसलिए बस यही अंतिम पहलू बचा है जिस पर आज बुद्धिजीवी काम करने में जुटे हैं वर्मा जी.
शर्मा जी: ओह! यानि अब हमें भी इस मार्ग पर चलना पड़ेगा?
वर्मा जी: यह तो आप पर निर्भर करता है कछुआ रहना है या खरगोश. बाकी इस डगर पर चलने के लिए अब आप सोचिये आपको क्या बनना है केवल लेखक या साथ में पाठक भी ...इसलिए जो हाथ में हैं उन्हें बचा सको तो बचा लो.
मंगलवार, 26 जुलाई 2022
नए सफ़र की मुसाफिर बन ...
मेरे सीने में कुछ घुटे हुए अल्फाज़ हैं जिनकी ऐंठन से तड़क रही हूँ मैं
मगर मेघ हैं कि बरसते ही नहीं,
वो जो कुरेद रहा है जमी हुई परतों को
वो जो छील रहा है त्वचा पर पसरे अवसाद को
जाने कहाँ ले जाएगा, किस रंग में रंगेगा चूनर
मेरा हंस अकेला उड़ जाएगा
और मैं हो जाऊँगी असीम ... पूर्णतः मुक्त
ॐ शांति ॐ शांति ॐ शांति कहने भर से छूट जायेगा हर बंधन
उस पार से आती आवाजें ही करेंगी मेरा स्वीकार और सबका परिहार
ये अंतिम इबादत का समय है
रूकती हुई धडकनों की बांसुरी से अब नहीं बजेगी कोई धुन
घुटते गले से नहीं उचारा जाता राम नाम
बस आँखों के ठहरने भर से हो जाएगा सफल मुकम्मल
बहुत गा लिए शोकगीत
बस गाओ अब मुक्ति गीत
देह साधना पूर्णता की ओर अग्रसित है
तुम्हारा रुदन मेरी अंतिम यात्रा की अंतिम परिणति है
और मैं बैठी हूँ पुष्पक विमान में
नए सफ़र की मुसाफिर बन ...
रविवार, 24 जुलाई 2022
कलर ऑफ लव
सादर सूचनार्थ:
भारतीय ज्ञानपीठ-वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित मेरे उपन्यास 'कलर ऑफ लव' का दूसरा संस्करण अब अमेज़न पर उपलब्ध है। नीचे दिए लिंक से आप किताब मँगवा सकते हैं और अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया से अवगत भी करवा सकते हैं :
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गुरुवार, 30 जून 2022
इश्क मैं क्यों करया...
शनिवार, 21 मई 2022
अमर होने के लिए जरूरी नहीं अमृत ही पीया जाये
बुधवार, 2 मार्च 2022
शाश्वत किन्तु अभिशप्त सत्य