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बुधवार, 4 अगस्त 2021
कांस्य प्रतिमा
शब्दविहीन मैं
किस भाषा में बोलूँ
अर्थ संप्रेषित हो जाएँ
रसहीन मैं
किस शर्करा में घुलूं
स्वाद जुबाँ पर रुक जाए
रंगहीन मैं
किस रंग में ढलूँ
केवल एक रंग ही बच जाए
गाढे वक्त के एकालाप से लिखी कांस्य प्रतिमा हूँ मैं
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