पृष्ठ

अनुमति जरूरी है

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लोग से कोई भी पोस्ट कहीं ना लगाई जाये और ना ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जाये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

गुरुवार, 19 सितंबर 2019

उल्फत के गुलाब

धुआँ घुटन का किस फूँक से उड़ायें
धंसे बेबसी के काँच अब किसे दिखायें
न हो सकी उन्हीं से मुलाकात औ गुजर गयी ज़िन्दगी
अब किस पनघट पे जाके प्यास अपनी बुझायें

मन पनघट पर जा के बुझा ले प्यास सखी
पिया आयेंगे की लगा ले आस सखी
वो भी तुझे देखे बिन रुक न पायेंगे
फिर क्यों विरह से किया सोलह श्रृंगार सखी

साँझ की बेला में ही जवाकुसुम खिलते हैं
मन के हरसिंगार तो मन में ही झरते हैं
कैसे प्रीत की रीत सिखाऊँ सखी
पिया मिलन बिन तो अश्रु बिंदु ही गिरते हैं

चंदा की चांदनी से कर श्रृंगार सखी
तारों की ओढ़नी से सर ढांप सखी
नयनों में डाल विभावरी का सुरमा
दे अपनी प्रतीक्षा को नया आयाम सखी

पल पल युगों सम बीतें जिसके
वो क्या अंतिम क्षणों को रोके
आस का करके स्वयं ही तर्पण
अब अंतिम प्रयाण का है आगाज़ सखी

उल्फत के गुलाब हर बार शरद में ही खिलें जरूरी तो नहीं .....






3 टिप्‍पणियां:

Nitish Tiwary ने कहा…

बहुत सुंदर पंक्तियाँ। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com

Onkar ने कहा…

बहुत बढ़िया

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब