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रविवार, 16 अगस्त 2015

भाषा के विकल्प

न डोंगरी न तमिल न कन्नड़ 
न ही अरबी उर्दू या फारसी 
न हिंदी संस्कृत या रोमन 
कोई भी तो मेरी भाषा नहीं 

आती है मुझे सिर्फ एक भाषा 
जिसके साथ जन्मा था 
जिसके साथ स्वीकारा गया 
पुचकारा गया , लाड लड़ाया गया 
जी हाँ , वो है ममत्व की , अपनत्व की , प्रेमत्व की 

भला इससे भी बेहतर हो सकती है कोई भाषा 
अगर हाँ , तो पढ़ाना मुझे भी 
शायद इंसान बन सकूँ 
सुना है ......... तुम जानते हो इंसानियत की सबसे बेहतर कोई भाषा 

क्योंकि 
मैंने नहीं सीखे भाषा के विकल्प .......

3 टिप्‍पणियां:

Rajput ने कहा…

बहुत खूब ! प्रेम से बढ़कर कोई भाषा हो ही नहीं सकती

mridula pradhan ने कहा…

तुम जानते हो इंसानियत की सबसे बेहतर कोई भाषा
क्योंकि
मैंने नहीं सीखे भाषा के विकल्प .......बहुत अच्छा लिखी हैं, इस भाषा का कोई विकल्प न है न होगा.

abhi ने कहा…

बेहद सुन्दर !